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सिविल कानून
किसी संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये परिसीमा अवधि
« »14-Sep-2023
ए. वल्लियम्मई बनाम के. पी. मुरली जब किसी संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये समय निर्धारित नहीं है, तो विनिर्दिष्ट पालन वाद के लिये सीमा अवधि उस तारीख से चलेगी जिस दिन वादी को प्रतिवादी की ओर से इनकार की सूचना मिली थी। उच्चतम न्यायालय |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि जब किसी संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये समय तय नहीं किया जाता है, तो एक विनिर्दिष्ट पालन मुकदमे के लिये सीमा अवधि उस तारीख से प्रारंभ होगी, जिस दिन वादी को प्रतिवादी की ओर से इनकार करने की सूचना मिली थी। ए. वल्लियम्मई बनाम के.पी. मुरली के मामले में सीमा की अवधि निर्धारित करने के लिये अनुबंध का पालन करना।
पृष्ठभूमि
- अपीलकर्ता (ए. वल्लियम्मई) के पास कथित तौर पर 11 एकड़ ज़मीन है।
- अपीलकर्ता ने 1988 में संपत्ति बेचने के लिये एक समझौता किया था। 1,00,000/- रुपये की राशि को अग्रिम के रूप में प्राप्त किया गया था और शेष राशि का भुगतान एक वर्ष में किया जाना आवश्यक था।
- शेष बिक्री प्रतिफल (sale consideration) के भुगतान और बिक्री विलेख के निष्पादन की समयसीमा बाद में 6 महीने बढ़ा दी गई थी।
- वर्ष 1991 में अपीलकर्ता को शेष बिक्री प्रतिफल स्वीकार करने एक कानूनी नोटिस जारी किया गया और एक महीने के भीतर बिक्री विलेख निष्पादित करने के लिये कहा गया है। यह सहमति हुई कि सेल डीड को संविदा की तारीख से एक वर्ष के भीतर निष्पादित किया जाएगा।
- इसमें विभाजन का एक मुकदमा लंबित था साथ ही विभाजन के मुकदमे के निपटान के बाद बिक्री विलेख निष्पादित किया जाना था, जिसे बाद में डिफॉल्ट के रूप में खारिज कर दिया गया था।
- वर्ष 1991 में, अपीलकर्ता को बिक्री विलेख (Sale deed) के निष्पादन तक वादकालीन संपत्ति से निपटने से रोकने के लिये स्थायी निषेधाज्ञा के लिये एक मुकदमा दायर किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश पारित किया गया था।
- अब, वर्तमान प्रतिवादी (के. पी. मुरली) ने वर्ष 1995 में कार्यवाही प्रारंभ की, निषेधाज्ञा के संबंध में वर्ष 1991 में दिये गये नोटिस पर संपत्ति की बिक्री के अनुबंध के अनुसार विनिर्दिष्ट पालन की मांग करना।
- अनुबंध के विनिर्दिष्ट पालन के लिये परिसीमा की बाधा सहित कई आधारों पर बचाव किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने एक मुद्दा तय किया, वह यह कि क्या वादी विनिर्दिष्ट पालन की राहत के हकदार थे और साथ ही निष्पादन का निर्देश भी दिया।
- न्यायालय के उपरोक्त निर्णय की मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पुष्टि की।
- अपीलकर्ता ने अपील में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
परिसीमा अवधि - परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 2(J) इसे अनुसूची द्वारा किसी भी मुकदमे, अपील या आवेदन के लिये निर्धारित सीमा की अवधि के रूप में परिभाषित करती है।
निर्धारित अवधि - परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 2(J) इसे अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार गणना की गई परिसीमा अवधि के रूप में परिभाषित करती है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने कहा कि परिसीमा अधिनियम, 1963 की अनुसूची के प्रथम श्रेणी के अनुच्छेद 54 में विनिर्दिष्ट पालन के मुकदमे के लिये 3 वर्ष की सीमा अवधि निर्धारित की गई है।
- न्यायालय ने कहा कि विनिर्दिष्ट पालन के लिये मुकदमा दायर करने की सीमा अवधि वर्ष 1991 में प्रारंभ हुई थी जब निषेधाज्ञा के लिये मुकदमा दायर किया गया था और वर्तमान मुकदमा वर्ष 1995 में दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि "अपीलकर्ताओं को इस अपील में सफल होना चाहिये क्योंकि विनिर्दिष्ट पालन के लिये मुकदमा दायर किया गया है, स्पष्ट रूप से और बिना किसी संदेह के परिसीमा से वर्जित" के साथ उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया गया।
कानूनी प्रावधान
- किसी अनुबंध के विनिर्दिष्ट पालन के लिये परिसीमा अवधि परिसीमा अधिनियम, 1963 द्वारा प्रदान की जाती है।
- अनुबंध का विनिर्दिष्ट पालन : यह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 10 के अंर्तगत प्रदान किया गया एक न्यायसंगत अनुतोष है। इस अधिनियम में वर्ष 2018 संशोधन इस प्रकार है:
- धारा 10 - अनुबंधों के संबंध में विनिर्दिष्ट पालन : अनुबंध का विनिर्दिष्ट पालन न्यायालय द्वारा धारा 11, धारा 14 और धारा 16 की उप-धारा (2) में निहित प्रावधानों के अधीन लागू किया जाएगा।
- धारा 11 - ऐसे मामले जिनमें ट्रस्टों से जुड़े अनुबंधों का विनिर्दिष्ट पालन प्रवर्तनीय है : (2) किसी ट्रस्टी द्वारा अपनी शक्तियों से अधिक अथवा विश्वास के उल्लंघन में किया गया अनुबंध विशेष रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
- धारा 14 संविदाएँ जो विनिर्दिष्टतः प्रवर्तनीय नहीं हैं- (1) निम्नलिखित संविदाएँ विनिर्दिष्टतः प्रवर्तित नहीं हैं, अर्थात्: -
(क) वह संविदा जिसके अपालन के लिये धन के रूप में प्रतिकर यथायोग्य अनुतोष हो
(ख) वह संविदा जिसमे सूक्ष्म या अत्यधिक ब्यौरे हों अथवा जो पक्षकारों की वैयक्तिक अर्हताओं या स्वेच्छा पर इतनी आश्रित हो अथवा अन्यथा अपनी प्रकृति के कारण ऐसी हो कि न्यायालय उसके तात्त्विक निबन्धनों के विनिर्दिष्ट पालन का प्रवर्तन न करा सकता हो;
(ग) वह संविदा जो अपनी प्रकृति से ही पर्यवसेय हो;
(घ) वह संविदा जिसके पालन में ऐसा सतत्-कर्तव्य का पालन अन्तर्वलित है जिसका न्यायालय पर्यवेक्षण न कर सके। - धारा 16 - अनुतोष का वैयक्तिक वर्जन-संविदा का विनिर्दिष्ट पालन किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में नही कराया जा सकता-(क) जो उसके भंग के लिये प्रतिकर वसूल करने का हकदार न हो, अथवा
(ख) जो संविदा के किसी मर्मभूत निबन्धन का, जिसका उसकी ओर से पालन किया जाना शेष हो, अथवा पालन करने में असमर्थ हो गया हो, या उसका अतिक्रमण करे, एवं संविदा के प्रति कपट करे साथ ही जानबूझकर ऐसा कार्य करे जो संविदा द्वारा स्थापित किये जाने के लिये आशयित संबंध का विसंवादी या ध्वंसक हो;
अथवा
(ग) जो यह प्रकथन करने और साबित करने में असफल रहे कि उसके संविदा के उन निबन्धनों से भिन्न जिनका पालन प्रतिवादी द्वारा निवारित अथवा अधित्यक्त किया गया है, ऐसे मर्मभूत निबन्धनों का, जो उसके द्वारा पालन किया जाना हैं, उसने पालन कर दिया है अथवा पालन करने के लिये वह सदा तैयार करना तथा सहमति रहा है।
स्पष्टीकरण - खण्ड (ग) के प्रयोजनों के लिये-
(i) जहाँ तक
संविदा में धन का संदाय अन्तर्वलित हो, वादी के लिये आवश्यक नहीं है कि वह प्रतिवादी को किसी धन का वास्तव में निविदान करे या न्यायालय में निक्षेप करे सिवाय जबकि न्यायालय ने ऐसा करने का निदेश दिया हो;
(ii) वादी को यह प्रकथन करना होगा कि वह संविदा का उसके शुद्ध अर्थान्वयन के अनुसार पालन कर चुका, अथवा पालन करने के लिये तैयार करना तथा सहमति है।